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लेखनी कहानी -16-Jan-2023 2)वो लाल बिल्डिंग वाला स्कूल( स्कूल - कॉलेज के सुनहरे दिन )




शीर्षक = वो लाल बिल्डिंग वाला स्कूल




हमारा पहला स्कूल जहाँ हमने छोटे अ से अनार से लेकर ज्ञ से ज्ञानी तक का सफऱ तय किया था, यानी कि हिंदी कि वर्ण माला, अंग्रेजी की वर्ण माला और एक से लेकर सो तक गिनती सीखी थी, जो की हमें आज़ भी याद है और आगे भी याद रहेगी ज़ब तक का भी हमारा जीवन है


वो पहला स्कूल जो की हमारे घर से कुछ चंद क़दमों की दूरी पर ही था,नजदीक होने की वजह से ज्यादातर बच्चें उसी स्कूल में पढ़ने जाते थे उसी के साथ साथ एक अन्य स्कूल और भी था जिसका नाम प्रेम शिशु निकेतन था, उसमे भी बहुत से बच्चों ने प्राइमरी शिक्षा प्राप्त की है, हमारे बड़े भाई बहनो के साथ साथ उनके दोस्तों और रिश्तेदारों ने भी


वो दोनों स्कूल जिसमे हम पढ़ते थे और दूसरा स्कूल जिसमे और बच्चें भी पढ़ते थे, उन दोनों का उद्देश्य सिर्फ और सिर्फ कम पैसों में बच्चों को शिक्षा देना था, तब ही तो आज़ की तरह ना ज्यादा किताबें थी और ना ही कोई चोच ले जैसा की आज़ कल स्कूल वाले करते रहते है,


उस समय को देखते हुए वो स्कूल नहीं एक प्रकार के मंदिर थे जहाँ हर बच्चें को बहुत ही कम ज़रूरतों के साथ विद्या मिलती थी, ड्रेस फटी होने पर, जूते नहीं होने पर, किताबें ना होने पर, बस्ता पुराना होने पर या फिर झोले में किताबें होने पर ज़लील नहीं किया जाता था, ना ही किसी बच्चें को कभी अपने गरीब या अमीर होने पर कोई घमंड होता था, क्यूंकि सब बच्चें एक साथ एक ही कक्षा में बैठ कर पढ़ते थे


उस लाल बिल्डिंग वाले स्कूल की प्रिंसिपल जिनका नाम तो मुझे याद नहीं, लेकिन इतना याद है वो छोटे से कद की थी और थोड़ी मोटी सी थी सब उन्हें बडी मेम कह कर पुकारते थे


वो स्कूल उन्होंने ही अपने घर में खोला था, अपने पति के साथ मिलकर

उस समय हमने क्या कुछ किया था, ध्यान दोड़ाने पर भी याद नहीं आ रहा, क्यूंकि समय इतनी तेजी से गुज़रा की अब वो यादें मिट सी गयी है लेकिन थोड़ा बहुत धुंधला सा याद है, हम उस स्कूल में ज़ब पहली कक्षा में थे, तब एक बड़ा सा तख़्त था जिसपर सब बच्चें एक साथ बैठते थे, और कुछ शैतान बच्चें भी थे जो एक दुसरे को धक्का देते रहते थे


उस समय टीचर को मैडम या फिर टीचर नहीं कहते थे हम सब बच्चें, उस समय टीचर को दीदी या फिर मिस कहकर मुख़ातिब करते थे


छोटा सा बस्ता चंद किताबें उसमे हम लिए दौड़े दौड़े घर से स्कूल और फिर स्कूल से घर जाते थे

और जो कुछ भी स्कूल में घटना घटती उसे अपनी तोतली जुबान में घर वालों को बता देते, आधी समझ आती उनके और आधी नहीं



कुछ और धुंधली यादें है उस स्कूल से जुडी हुयी उन्हें जल्द लेकर आपके समक्ष हाजिर हूँगा, ज़ब तक के लिए अलविदा


धन्यवाद


स्कूल / कॉलेज के सुनहरे दिन 

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4 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:43 PM

Nice

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अदिति झा

21-Jan-2023 11:02 PM

Nice 👍🏼

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Gunjan Kamal

20-Jan-2023 04:12 PM

शानदार लिखा

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